Thursday, February 7, 2008

मेरी एक सहेली है....



मेरी एक सहेली है,
बहुत अच्छी !!
बहुत वर्षों के बाद,
अब जाकर
मुझको यहाँ मिली है.

मेरी एक सहेली है,
बिलकुल मेरे जैसी !!
चंचल तो कभी शांत-सी,
सिर-से-पाँव तक जैसे
मेरे रंग में ही ढली है.

मेरी एक सहेली है,
भावुक-सी !!
छुई-मुई की तरह कोमल-सी,
तो ओस की बूंद की तरह निर्मल-सी,
कभी नीम तो कभी मिसरी की डली है..

मेरी एक सहेली है,
मेरी हमराज़-सी !!
मेरे भावनाओं में बहनेवाली,
मेरे अंतर्मन में प्रकाश करनेवाली,
मुझसे मुझको ही चुराती,
व मुझे ही सौंप जाती,
एक सुखद स्वपन की भांति, अबूझ पहेली है..

मेरी एक सहेली है,
मेरी परछाई-सी !!
हज़ारों की भीड़ में मुझे ढूँढ़ निकालनेवाली,
जग से लड़ मेरी परवाह करनेवाली,
मुझे अपना समय देकर भी
वो मुझ-जैसी ही अकेली है..

मेरी एक सहेली है.....

Wednesday, February 6, 2008

यह कैसी दीवार मनों के बीच..??



कैसे मिलाऊं अब मैं तुमसे
अपने मन की भावनाओं से,
और कैसे झट-से मिल लूँ
तेरी अकेली-सी इच्छाओं से;

यह कैसा सुकून
घुट-घुट कर रह जाने में,
यह कैसा जश्न
फिर-से अकेला बन जाने में;

यह कैसी दीवार बन रही है,
मनों के बीच..

इक ईंट रखी मैंने
तेरे ना बताने की तर्ज़ पर,
इक ईंट तूने रखी
अपनी हठधर्मिता को निभाने पर;

दूसरी रखी मैंने, सिर्फ
अपने अहम् को सर्वोपरि बनाने पर,
तो तीसरी तूने भी रख दी
इसी क्रमवार को आगे बढाने पर;

यह कैसी दीवार बन रही है,
मनों के बीच..

गलती तेरी मेरी ही सही
लाभ क्यूँ उठाते पराये है?
यह चून-लेप और कीचड़, इन्होंने ही
तो इन ईंटों पर लगाये है;

मान भी जाओ अब तुम तो
मैं भी जिद से हार रही हूँ,
गीली है मिटटी अभी भी, मत कहना!
-पूरी तरह से सख्त होने का इंतज़ार कर रही हूँ;

यह कैसी दीवार बन रही है
मनों के बीच....

Saturday, February 2, 2008

जीना सिखा दो..



उड़ते हुए परिंदों को रोक कर
हमने पूछा था एक बार-
हमको भी उड़ना सिखा दो,
गगन में चलना सिखा दो,
यूं चहकना, फड़कना सिखा दो,
उड़ते हुए परिंदों को रोक कर
हमने पूछा था एक बार....

धूप में जलते हुए भी हँसना सिखा दो,
वो अपने से बडे विशालकाय
उस गिध्द की नज़रों से बचना सिखा दो,
वो ऊँचाइयों से नीचे उतरना सिखा दो,
उड़ते हुए परिंदों को रोक कर
हमने पूछा था एक बार....

वो सर्द हवाओं को झेलना सिखा दो,
वो हर मौसम में मुस्कुराना सिखा दो,
वो बिन दानों पे भी जीना सिखा दो,
उड़ते हुए परिंदों को रोक कर
हमने पूछा था एक बार....

वो डर के भी निडर बनना सिखा दो,
चाहे हो वो ऊँचा पर्वत या कोई समंदर
हर मुश्किल से लड़ना सिखा दो,
कि हमको भी अपनी तरह जीना सिखा दो,
उड़ते हुए परिंदों को रोक कर
हमने पूछा था एक बार....