Thursday, February 19, 2009

मेरी ख़ुशी



दूसरो से क्या कहूँ, क्या सुनूँ,
उन्हें क्यूँ भला किसी की चिंता हुई.
अपने मन की हालत मैं ही जानूँ,
मकड़ी के जाल में मैं जकड़ी हुई.

हैं मंजिल अपनी, अपनी है राह,
कांटें भी मेरे लिए ही बिछी हुई.
तो दूसरों से किस बात की है चाह,
अपनी किस्मत तो अपने लिए ही बनी हुई.

किसी भुलावे में आकर भटक न जाऊँ,
इस अहसास से भी मैं डरी हुई.
किस रास्ते को मैं अपना बनाऊँ,
इसी पशोपेश में मैं पड़ी हुई.

आसमां को छूना है, तारों को चूमना है,
न ऐसी तमन्ना मेरे दिल में कभी हुई.
मुझे तो बस अपने पैरों पे खड़ा होना है,
चाहे लाख मुसीबत हो मेरे पीछे पड़ी हुई.

उनकी कसौटियों पे खरा उतरना है,
जिनकी आशाएं मुझसे है जगी हुई.
मुझे हर हाल में उन्हें खुश रखना है,
मेरी ख़ुशी मेरे अपनों में ही बसी हुई.

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