Saturday, November 21, 2009

तुम्हारी झूठ की दास्तान

तुम अकसर मुझसे
झूठ बोल जाया करते हो,
शायद यह सोच के कि
मैं बुरा न मान लूँ.
पर तुम्हारी ये जो
दो आँखें हैं ना,
मुझे इनको पढ़ना आता है.
ये अकसर तुम्हारी
झूठ की दास्तान
मुझे सुनाया करती है.
कभी-कभी तो तुम्हारी
जी-भर के शिकायत भी करती है.
क्योंकि तुम इनसे भी
झूठ बोला करते हो न?

3 comments:

डॉ .अनुराग said...

सच कह दिया ना!

अनिल कान्त said...

सच कहने कि उनकी आदत पुरानी है !

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

ya yun kahiye naa.... humne sach bulwa hi diya!!!!!!!!!!!!!!